बारिश से जंगली जानवरों को राहत और इंसानों के लिए आफत।
पिछले महीने भर से उत्तराखंड के जंगलों में आग धधक रही है करोड़ों छोटे-बड़े जीव जंतु मारे जा चुके हैं, लाखों पेड़-पौधे नष्ट हो चुके हैं बीती शाम अचानक आयी भयानक बारिश ने वनाग्नि को शांत कर जलते जंगलों और जंगली जीव-जंतुओं को राहत देने का काम किया है और उसी बारिश ने इंसानी बस्तियों और जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर प्रकृत्ति से छेड़छाड़ का बदला भी ले लिया है। (बारिश से तबाही)
जंगलों की आग से हारा सिस्टम, बारिश से मिली राहत
उत्तराखंड के जंगलों में पिछले कई सालों से हर साल आग लगने की घटनाएं बढती रहती है, साल दर साल ये घटनाएं और भयावह रूप लेती रहती है जंगल में रहने वाले जीव-जंतुओं पशु-पक्षियों पेड़-पौधों को इसका दंश झेलना पड़ता है, हर साल करोड़ों निर्दोष जीवों को अपनी आहूति देनी पड़ रही है।
शासन प्रशासन और स्थानीय लोग जब जंगलों की आग से हार मान चुके थे तब प्रकृति ने खुद ही बारिश की मदद से आग बुझाने का काम किया क्योंकि प्रकृति अपने जख्मों पर मलहम लगाना जानती है।
अतिवृष्टि से जीवन अस्त-व्यस्त(बारिश से तबाही)
जंगलों की आग बुझाने के बाद इंसानों को सबक सिखाने का काम भी बारिश ने ही किया, आपको बता दें कि कल शाम के समय अचानक उत्तराखंड के कई इलाकों पर अतिवृष्टि हुई है जिससे आवाजाही बाधित हो गई है, रास्ते-सड़कों पर मलवा आ गया, लोगों के घरों में मालवा आने से लाखों की संपत्ति तबाह हो गई है, खेत-खलिहानों को भी काफी नुकसान हुआ है, नदी के किनारे बने लोगों के कई आवास, शौचालय इत्यादि भी तबाह हो गए हैं।
आग की वजह से जिन जगहों पर जंगलों में छोटे पौधों और झाड़ियां जल चुकी थी उन्हीं जगहों पर बारिश से तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है क्योंकि वहीं सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, पानी का बहाव रोकने के लिए छोटे पौधे और झाड़ियां ही बाड़े का काम करती थी।
अल्मोड़ा-कौसानी हाइवे में आवाजाही बंद
कुमाऊँ और गढ़वाल के कई जिलों में इस बारिश का असर देखने को मिला है अल्मोड़ा-कौसानी हाइवे में आवाजाही रूक गई है जिससे सैकड़ों पर्यटक फसे हुए हैं।
घरों में जानवरों के दबकर मरने की भी कई खबरें आ रही हैं, लोगों की बकरियों पर बज्रपात की कई घटनाएं सामने आ रही हैं, खेतों में फसल का काफी नुकसान हुआ है, गनीमत है कि अभी तक लोगों के हताहत होने की कोई खबर नहीं आयी है।
निष्कर्ष ÷
इंसान खुद को इस श्रृष्टि का मालिक समझ बैठा है, इसीलिए वो आए दिन अपनी सुविधा के अनुसार प्रकृत्ति के साथ छेड़छाड़ करता रहता है, न्याय-अन्याय, पाप-पुण्य की परिभाषा भी वो अपनी आवश्यकता के अनुसार ही तय करता है, लेकिन वो ये भूल जाता है कि प्रकृति अपने जख्मों को भर देती है और छेड़छाड़ करने वाले को सबक सिखाना भी प्रकृति बहुत बेहतरीन तरीके से जानती है।
जंगलों को आग से बचाने के लिए हमें पुख्ता इंतजाम करने होंगे नहीं तो हर साल तबाही का मंजर देखना हमारी मजबूरी हो जाएगी।।
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