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असली जन कवि लापता ,फर्जी जनकवि कर रहे हैं सत्ता का गुणगान

कवियों की ताक़त पहचाने आज का समाज – गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा

कविताओं की ताक़त बहुत अधिक होती है, यह हमारे जीवन में कई तरह से प्रभाव डाल सकती हैं: क्योंकि कविताएँ हमारी गहरी भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करती हैं, जिन्हें हम अक्सर शब्दों में नहीं कह पाते हैं। इसी के साथ कविताएँ हमारी सोच को विकसित करने और नए दृष्टिकोणों को खोलने में मदद करती हैं। और कविताएँ हमें शांति और सुकून प्रदान करने के साथ ही मानव समाज में परिवर्तन भी ला सकती हैं।(गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा)

आज हम इस लेख में उत्तराखंड के ऐसे ही जनकवि की बात कर रहे हैं। जिन्होंने कई आंदोलनों को अपने शिखर तक पहुंचाया.. जिन्होंने अपनी कविताओं के दम पर राज्य सरकारों को हिलाया .. जिन्होंने अपनी लेखनी से पहाड़ को जगाया . और उनका नाम है गिरीश चन्द्र तिवारी उर्फ गिर्दा
जी हां आज हम बात करने वाले हैं उत्तराखंड के वह लाल जिन को पूरा उत्तराखंड आज भी दिलों में समाए रखा है ..

कुछ इस तरह की लेखनी थी

शुरुवात कविता की इन पंक्तियों के साथ करते हैं, पानी बिन जमीन प्यासी, खेतों में भूख उदासी,यह उलटबासियां नहीं कबीरा, खालिस खेल सियासी।
पानी बिन जमीन प्यासी, खेतों में भूख उदासी….।
(ये है पानी की जमीन प्यासी)
लोहे का सर-पाँव काट कर, बीस बरस में हुये साठ के-२
अरे! मेरे ग्रामनिवासी कबीरा, झोपड़ पट्टी वासी।
पानी बिन……

नल की टोंटी जल को तरसे, हवा घरों में पानी बरसे-२
अरे! ये निर्माण किये अभियंता, मुआयना अधिशासी ।
पानी बिन…..
(ये जो राष्ट्र के अधिशासी हैं, देखिये आप)
ये निर्माण किये अभियंता, मुआयना अधिशासी ।।
पानी बिन….
इस कविता ने केवल उत्तराखंड में ही नहीं पूरे देश में एक क्रांति का आगाज़ कर दिया..

गिर्दा ( गिरीश चंद्र तिवारी उर्फ गिर्दा) के पिता का नाम हंसा दत्त तिवारी और माता जी का नाम जिवंती देवी था ।
हंसा दत्त तिवारी और जीवंती देवी ने एक ऐसे लड़के को जन्म दिया जिसकी कविताओं ने कई बार राज्य की सरकारों को हिला दिया ..

10 सितंबर 1945 को ज्योली गांव हवलबाग ब्लॉक जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड में जन्मे गिर्दा आगे चलकर उत्तराखंड के लोगों के आइकन बन गए..गिर्दा ने अपने गीतों कविताओं से उत्तराखंड में जन आंदोलनों को नई ताकत दी चिपको आन्दोलन, नशा नहीं रोजगार दो, उत्तराखंड आंदोलन और नदी बचाओ आंदोलन को नए तेवर दिए ..

गिरीश चन्द्र तिवाड़ी गिर्दा

उनकी ये कविता बहुत प्रचलित हुई

बैणी फाँसी नी खाली ईजा, और रौ नी पड़ल भाई।

मेरी बाली उमर नि माजेलि , दीलि ऊना कढ़ाई।।
मेरी बाली उमर नि माजेलि, तलि ऊना कड़ाई।
रामरैफले लेफ्ट रेट कसी हुछो बतूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।
अर्जुनते कृष्ण कुछो, रण भूमि छो सारी दूनी तो।
रण बे का बचुलो , हम लड़ते रया बैणी हम लड़ते रूलो
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।
कसी होली विकास नीति, कसी होली ब्यवस्था।।
जड़ी कंजड़ी उखेलि भलीके , पूरी बहस करूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।

आपकी बताएं जन गीतों के नायक गिरीश चंद्र तिवारी गिर्दा उत्तराखंड के एक बहुचर्चित पटकथा लेखक, गायक, कवि ,निर्देशक ,गीतकार, साहित्यकार थे , गिर्दा को ही जन गीतों के नायक के रूप में भी देखा गया ,राज्य के निर्माण आंदोलन में अपने गीतों से पहाड़ी जनमानस में ऊर्जा का संचार और अपनी बातों को प्रभावशाली ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का अनोखा हुनर देखा।। (गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा)

गिर्दा अपनी जवानी में घर से भाग गए बाद में वह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में जाकर रहने लगे , इसके बाद में वह वहां से लखनऊ चले गए वह कुछ साल बिजली विभाग में नौकरी करने के बाद 1967 में गीत और नाटक विभाग लखनऊ में स्थाई नौकरी के लिए चले गए, इसी नौकरी के कारण गिर्दा का आकाशवाणी लखनऊ में आना जाना शुरू हुआ उनकी मुलाकात शेर दा अनपढ़, केशव अनुराई, उर्मिला कुमार थपलियाल ,और घनश्याम सैलानी जैसे महान कवियों से हुई ..

उनकी कुछ प्रमुख कविताएं हैं अंधा युग ,अंधेर नगरी चौपट राजा, नगाड़े ,खामोश, इंद्रधनुष जैसे अनेक नाटकों को उन्होंने निर्देशित भी किया… (गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा)

गिर्दा

यह कविताएं सरकारों को डराती थी

आज हिमालय जगा रहा है तुम्हें,
की जागो जागो मेरे लाल।
मत करने दो अब नीलाम मुझे.
मत होने दो मेरा हलाल.
पत्थर बेचा मिट्टी बेचे बेचे जंगल हरे बांस के,
लीसा गडान के घावों से दी,
गई खाल मेरी उतार.
संगीत गीत सब भेज दिए .
मेरे इन सुमधुर कंठो का सुर बेच दिया.
सब बेच दिया ठंडा पानी ठंडी बयार.
चलन आज का नहीं पुराना है, छानिगें इतिहास तो यही मिलेगा जिनको भी अपने कांधे बिठाया हमने,
वही बन के काल हमारे यही सही इतिहास कहेगा..

गिर्दा उस समय लोगों की आवाज बन चुके थे जब उत्तराखंड में जंगलों के अंधाधुंध कटान के खिलाफ 1974 में चिपको आंदोलन और जंगलात की लकड़ियों के नीलामी हो रही थी।।

उसके बाद अनेक आंदोलन होते रहे , उत्तराखंड के साल 1970 में चले वन बचाओ आंदोलन, 1984 के नशा नहीं रोजगार दो और 1994 में हुए उत्तराखंड आंदोलन में अपनी रचनाओं से जान डाल दी थी इतना ही नहीं उसके बाद भी हर आंदोलन में गिर्दा ने बढ़-चढ़कर शिरकत की..

इस कविता को ही देखो लिखते हैं इतना उदास मत हो, सर और घुटने अभी मत टेक.. इस दुनिया में एक दिन ऐसा अवश्य आएगा, जब यह काली रात ड्लेगी पो फटेगी, चिड़िया चहकेगी..

कविता

जिस दिन चोर फलींगे, फूलिंगे नहीं ,
किसी का जोर नहीं चलेगा ,इस दुनिया में एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जिस दिन कोई छोटा बड़ा नहीं होगा ,जिस दिन यह तेरा मेरा नहीं होगा. इस दुनिया में एक दिन ऐसा अवश्य आएगा, चाहे हम ना ना पाए, चाहे तुम ना ला पाओ, कोई ना कोई ऐसा दिन इस दुनिया में जरूर आएगा

अगर गिर्दा आज जिंदा होते तो वह अपनी रचनाओं और गीतों से आज भी सत्ता को चुनौती दे रहे होते ,उनकी सिरोही कविताएं आज भी गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ती हैं
इन कविताओं से वह इस सिस्टम के खिलाफ खुल कर लिखते थे, जो आज के दरबारी कवि नहीं लिखते। 22 अगस्त 2010 को इस जन कवि की बुलंद आवाज यूज हमेशा के लिए खामोश हो गई.. (गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा)

कौन होता है असली जनकवि

जन कवि वह होता है जो अपनी कविताओं के माध्यम से सामान्य लोगों की भावनाओं, समस्याओं, और जीवन की सच्चाइयों को व्यक्त करता है। जन कवि की कविताएँ अक्सर सरल भाषा में होती हैं और वे लोगों के दिलों को छूने की क्षमता रखती हैं। आज के वक्त में जैसे भाई हर्ष काफर ।।

आज अनेक लोग ख़ुद को जन कवि कहते हैं लेकिन जन कवि होना आसान नहीं है क्योंकि जन कवि की कविताएँ सामान्य लोगों की जिंदगी से जुड़ी होती हैं।
और जन कवि सरल और स्पष्ट भाषा का उपयोग करते हैं।
साथ ही जन कवि अपनी कविताओं में सच्चाई और ईमानदारी को व्यक्त करते हैं ।

जो आज बहुत कम नज़र आते हैं।
जन कवि की कविताएँ अक्सर सामाजिक मुद्दों और समस्याओं पर प्रकाश डालती हैं। जन कवि लोगों की आवाज़ बनता है और उनकी भावनाओं को व्यक्त करता है।

कुछ प्रसिद्ध जन कवियों में कबीर, तुलसीदास, सूरदास, और नागार्जुन के साथ ही गिर्दा भी शामिल हैं। ये कवि अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के दिलों को छूने में सफल रहे हैं। (गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा)

गिर्दा 2

निष्कर्ष

जन कवियों की ताक़त बहुत अधिक होती है, आज गिर्दा जैसे जन कवियों की कमी महसूस होती है, क्योंकि गिर्दा जैसे जन कवि अपनी कविताओं से लोगों के दिलों को छूने में सफल रहे हैं।
और जन कवि सच्चाई और ईमानदारी से अपने विचार व्यक्त करते हैं, जो लोगों को प्रेरित करती है। और समाज में सुधार लाती हैं।

जन कवि की कविताएँ सामाजिक परिवर्तन की दिशा में काम करती हैं। गिर्दा जैसे जन कवि लोगों की आवाज़ बन जाते हैं , इसी के साथ जन कवि की कविताएँ हमेशा अमर होती हैं और पीढ़ियों तक जीवित रहती हैं। इस लिए आज असली जन कवियों की शक्त आवश्यकता है।।

 

error: थोड़ी लिखने की मेहनत भी कर लो, खाली कापी पेस्ट के लेखक बन रहे हो!