क्या खुरपिया में नए औद्योगिक स्मार्ट सिटी (सिडकुल) का झुनझुना दिखा रही सरकार ?
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने देश में 12 नए इंडस्ट्रियल कोरिडोर स्थापित करने का फैसला कर लिया है। इन 12 परियोजनाएं में 28,602 करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे । इनमें से एक उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले में रुद्रपुर से 12 किलोमीटर दूर स्थित खुरपिया को भी औद्योगिक स्मार्ट सिटी की तर्ज पर विकसित किया जाना है, लेकिन आज हम इस लेख में इसके लाभ – हानि के साथ – साथ सरकार की नीति के बारे में विस्तार से बात करेंगे। (सिडकुल)
खुरपिया सिडकुल का यह रखा गया है लक्ष्य
नेशनल इंडस्ट्रियल कोरिडोर डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के तहत बड़े और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) में निवेश की सुविधा प्रदान करने के लिए इन 12 नए औद्योगिक क्षेत्रों को च्निहित किया गया है, जिनसे 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। इन शहरों के गठन से करीब 10 लाख प्रत्यक्ष रोजगार और नियोजित औद्योगिकीकरण के माध्यम से 30 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होने का अनुमान है। यह कितना सच होगा वह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा, लेकिन अब यहां बुनियादी ढांचे के विकास के साथ टिकाऊ और कुशल औद्योगिक गतिविधियों का विकास किया जाएगा।
नए सिडकुल के बनने से यह होंगे लाभ
नए उद्योगों के लगने से खुरपिया क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे,जिससे उत्तराखंड के लोगों को काम मिलने की संभावना है, साथ ही उद्योग लगने से खुरपिया क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और उद्योग लगने से खुरपिया क्षेत्र में बुनियादी ढांचे जैसे कि सड़कें, पुल, और अन्य सुविधाओं का विकास होगा , हो सकता है उद्योग लगने से क्षेत्र में सामाजिक सुविधाओं जैसे कि स्कूल, अस्पताल, और अन्य सुविधाओं में वृद्धि हो जाए।
पहाड़ से दूर 1000 एकड़ में फैलेगा खुरपिया इंडस्ट्रियल एरिया (सिडकुल)
इंदिरा गांधी ने एक अपने प्रधानमंत्री रहते हुए कि एक गरीबी हटाओ का नारा दिया लेकिन देश से आज तक गरीबी नहीं हटी, इसका कारण भी सही आम जनता को सपने दिखाना था, उसी की तर्ज में एक सपना मोदी सरकार भी दिखा रही है ।।
सरकार का कहना है कि 1000 एकड़ में खुरपिया इंडस्ट्रियल एरिया फैलेगा इसमें ऑटोमोबाइल्स, ऑटो कंपोनेंट, इंजीनियरिंग और फैब्रिकेशन सेक्टर पर फोकस किया जाएगा। बड़ी बात यह है कि 1265 करोड़ की लागत से खुरपिया प्रोजेक्ट के कारण उत्तराखंड में 75 हजार रोजगार सृजित होने का अनुमान है
इन 75000 में कितने उत्तराखंड के होंगे वह हम नहीं बता सकते क्योंकि यूपी से लगे होने के कारण ज्यादा यूपी, बिहार के लोगों को ही रोजगार मिलने की संपूर्ण आशा है क्योंकि खुरपिया इंडस्ट्रियल क्षेत्र यूपी से जुड़ा है, लेकिन उत्तराखंड में होने के बाद भी उत्तराखंड के मूल निवासियों से दूर दिखाई देता है अगर पहाड़ियों को रोज़गार मिलता है तो (जिसकी उम्मीद कम ही दिखाई देती है) पहाड़ियों को फिर भी पलायन करना ही पड़ेगा ।।
नेताओं के बेरोजगार अपनों को भी मिलेगा रोजगार
नए औद्योगिक स्मार्ट सिटी बनने से बेरोजगार नेताओं के अपने लोगों को भी नेता यहां मैनेजर और बड़ी पोस्टों में जुगाड़ से लगा सकते हैं क्योंकि उनका साफ मानना है कि इस औद्योगिक स्मार्ट सिटी को हमने स्थापित किया है तो यहां हम जो चाहेंगे वह किया जाएगा जैसे सचिवालय में अपने रिश्तेदारों को नौकरी में लगा दिया जाता है वैसे ही पूरी संभावना औद्योगिक स्मार्ट सिटी में भी बड़े पदों में नेताओं के रिश्तेदारों के लगने की संभावना मुझे नजर आती है ।।
पुराने सिडकुल में लग रहे हैं ताले नए सिडकुल का दिया जा रहा है झुनझुना
हम कुछ विशेष मुद्दों पर फोकस करना चाहते हैं वर्तमान सिडकुल की स्थापना जब 2002 में एनडी तिवारी सरकार ने की तो इसका उद्देश्य उत्तराखंड के लोगों को सशक्त बनाना था, उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार से जोड़ना था, उत्तराखंड के युवाओं के मां-बाप के लिए एक सहारे की आश उस समय इस सिडकुल से उत्पन्न अवश्य हुई थी , लेकिन आज उत्तराखंड के इस सिडकुल की सैकड़ो कंपनियों में लग रहे ताले और बेरोजगार हो रहे युवा यह गवाही दे रहे हैं कि उत्तराखंड की पिछली सरकारें पिछले 22 सालों में सिडकुल को रोजगार का हब बनाने में असफल हो गई हैं ।।
इस दौरान सिडकुल के नाम पर अनेक नेता भी बन गए , श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए अनेक श्रमिक संगठन बन गए लेकिन यह नेता और संगठन सच कहूं तो श्रमिकों के लिए नहीं खुद के पैसे कमाने के लिए बन गए हैं , इन्होंने अपने संगठन को धंधा बना दिया है और कंपनियों से पैसा लेकर अपनी मौज उड़ाने लगे हैं और इसका भार भी श्रमिकों पर ही पड़ रहा है, इसी कारण नेताओं और संगठनों को कंपनियां ने पैसा देने के लिए गरीब श्रमिकों के पेट पर लात मारकर उन्हें कम पैसे देकर नेताओं खुश करने का काम किया है, यानी साफ़ शब्दों में कहूं तो सरकारें सिडकुल को सही से चलाने में पूर्ण रूप से असफल हो गई हैं ।
संकट में श्रमिक, यह हैं हालत
उत्तराखंड के लिए खुशियां लाने की उम्मीद वाला सिडकुल कुछ दुख भी लाया इस सिडकुल ने उत्तराखंड के लोगों को कुली प्रथा की तरह ही अपना शिकार बना दिया, इस सिडकुल ने उत्तराखंड के युवाओं को सबसे सस्ता श्रमिक बना दिया
जब कोई कर्मचारी सुबह जाता है और शाम को आता है और फिर भी उसे वेतन के रूप में दिन के मात्र ₹300 मिलते हैं तो इस महंगाई के जमाने में वह अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है क्योंकि बाहर रोड में मजदूरी करने वाले लोग भी दिन के ₹700 कमा रहे हैं लेकिन कंपनियां ने अपने फायदे के लिए आम जनमानस को केवल अपनी आय का स्रोत बना दिया है , साथ ही इस सिडकुल ने बाहरी लोगों को उत्तराखंड में आने दिया और बाद में उन्हें यही का बना दिया और सबसे बड़ा नुकसान इस सिडकुल ने यहां के युवाओं को बधुवा मजदूर बनाने का काम किया है।
धियाड़ी मजदूर से बुरे हैं सिडकुल कर्मचारियों के हाल
अगर कहा जाए कि पुराने सिडकुल में 8 – 9 हज़ार में काम कर रहे युवाओं को एक तरह से मानसिक तनाव का शिकार बना दिया गया है तो कुछ भी गलत नहीं होगा, कंपनियों से अपने चुनाव के लिए फंडिंग उठाने वाली BJP, CONGRESS, और अन्य सभी दलों ने युवाओं को बर्बाद करने के लिए छोड़ दिया है, युवा घर से दूर रहकर और कड़ी मेहनत करके अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं, अनेक कंपनियों में ताले लग रहे हैं उसमें काम करने वाले श्रमिक लगातार धरने दे रहे हैं लेकिन एक नया सपना दिखाकर उन मुद्दों को भुलाने की कोशिश की जा रही है।।
सिडकुल में घर की मुर्गी दाल बराबर
जिस सिडकुल में 70% उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार देने की बात बड़े समय से हुई , वहां 70% से ज्यादा नौकरी कर रहे युवा यूपी बिहार के हैं, चलो छोड़ो इसमें हमको कोई बड़ी नाराज़गी नहीं है क्योंकि वह भी यहां काम करने के लिए आए हैं उनके राज्य में भी कोई रोजगार के अवसर नहीं हैं और वह भी सस्ते श्रम में यहां काम करने के लिए मजबूर हैं लेकिन सवाल यह है कि उत्तराखंड उन राज्यों में क्यों शुमार है जिन राज्यों में श्रमिकों की बेसिक सैलरी अभी भी मात्रा लगभग 11 हज़ार के करीब पहुंची है जबकि भारत के ही अनेक राज्यों ने इसे 15 से 17000 तक कर दिया है ।।
क्या बेरोजगारी पर दबाव में है सरकार
कहीं यह झुनझुना बेरोजगारी के दबाव से बाहर आने के लिए तो नहीं लिया गया क्योंकि उत्तराखंड में बढ़ रही लगातार बेरोजगारी और श्रमिकों के हो रहे शोषण के कारण अब उत्तराखंड के युवाओं में सरकार के प्रति भारी रोष है जिस कारण जगह-जगह आंदोलन होते रहते हैं और युवा अपनी मांगों को उठाते रहते हैं ऐसे में सरकार युवाओं को एक सपना दिखाकर इस सिडकुल की स्थापना तो नहीं कर रही ।।
श्रमिकों के लिए बने कानून भी हासिये में
भारत में श्रमिकों के हितों के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कानून हैं: सवाल है क्या इनका पालन होता है जैसे कि
मिनिमम वेजेस एक्ट 1948
इसमें श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी प्रदान करने का प्रावधान है। लेकिन उत्तराखंड सरकार की न्यूनतम वेतन सबसे कम है,
फैक्ट्रीज एक्ट 1948
इस कानून में फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी मानकों को निर्धारित करना होता है। लेकिन आज अनेक कंपनियों में सुरक्षा के लिए PPE तक उपलब्ध नहीं होते
वर्कमेन्स कंपेनसेशन एक्ट 1923
इस एक्ट में श्रमिकों को दुर्घटना में हुए नुकसान के लिए मुआवजा प्रदान करता है। जिसका पालन भी कुछ ही बड़ी कम्पनियों द्वारा ही किया जाता है,
ट्रेड यूनियन एक्ट 1926
इस कानून श्रमिकों को ट्रेड यूनियन बनाने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की अनुमति देता है।
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947
श्रमिकों और नियोक्ताओं के बीच विवादों को निपटाने के लिए प्रदान करता है।
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961
इसके अंतर्गत महिला श्रमिकों को मातृत्व लाभ प्रदान करता है।
और श्रमिकों के लिए भविष्य निधि और पेंशन योजनाएं श्रमिकों को सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती हैं
इन सभी अधिनियमों का सही इस्तेमाल हो रहा होगा या नहीं यह कहा नहीं जा सकता क्योंकि सरकार और फैक्ट्री मालिकों के बीच डोनेशन का भयानक रिश्ता श्रमिकों का गला घोटने के लिए धारदार हथियार का काम करता है।
कहीं गौलापार स्टेडियम की ही तरह राजनीति का भेंट तो नहीं चढ़ जाएगी नई औद्योगिक स्मार्ट सिटी?
इतना पैसा खर्च करने के बाद भी एक डर बना रहता है कि क्या कहीं यह औद्योगिक स्मार्ट सिटी भी राजनीति की भेंट तो नहीं चढ़ जाएगी, क्योंकि कई बार उत्तराखंड में यह देखा गया है जो काम कांग्रेस अपने कार्यकाल में करवाती है उसे बीजेपी सत्ता में आने के बाद रोक देती है , इसी तरह बीजेपी की कामों को रोकने का काम कांग्रेस ने भी किया है अगर आने वाले वक्त में सत्ता परिवर्तन होता है तो क्या नई बनने वाली सरकार इसे पूर्ण रूप से चालू करेगी इसका भी लोगों में डर है ।।
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निष्कर्ष
खुरपिया में बनने वाले नए औद्योगिक स्मार्ट सिटी से राज्य में रोजगार बढ़ाने की संभावना है, और राज्य की बेरोजगारी में कमी की भी संभावना नजर आती है साथ ही कई सवाल भी उठते हैं कि क्या इस औद्योगिक स्मार्ट सिटी से उत्तराखंड के युवाओं को फायदा होगा , या उत्तराखंड के युवाओं से नई औद्योगिक स्मार्ट सिटी में भी केवल काम लेकर उन्हें सस्ता श्रमिक बना दिया जाएगा
क्या श्रमिकों के लिए जो कानून देश में बने हैं उनका मजाक इसी तरह से उड़ाया जाएगा , क्या देश में सरकार श्रमिकों को आज भी केवल गधे के रूप में इस्तेमाल कर रही है अगर ऐसा है तो यह राज्य और देश के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता , वहीं राज्य और देश तरक्की करते हैं जहां आर्थिक समानता लाने की कोशिश की जाती हो लेकिन भारत में पूंजीवादियों की सरकारों ने पूंजीवाद को बढ़ावा देकर कुछ लोगों को अमीर बनाया और गरीब लोगों को ज्यादा करीब बनाने का लगातार काम किया जा रहा है ।
चाहे दावे कुछ भी करें लेकिन सच्चाई उसके उलट की नजर आती है यह सच है , यह कड़वा हो सकता है लेकिन जब आप बाजार में आम जनमानस की हालत देखते हैं तो आपको यह बिल्कुल सच नजर आता है, इसलिए हम उम्मीद करते हैं की नई औद्योगिक स्मार्ट सिटी में भी श्रमिकों को स्मार्ट बनने के लिएउनके अधिकारों की रक्षा होगी और उन्हें एक सम्मानजनक वेतन देकर सरकार इस औद्योगिक स्मार्ट सिटी की स्थापना करेगी
केवल दावे करने से वाह वाही लूटने वाली सरकारों को यह समझना पड़ेगा कि राज्य में हम हमेशा के लिए नहीं है हमें राज्य के लोगों की हितों की रक्षा के लिए भी अनेक कार्य करने ही होंगे अगर नहीं किए गए तो इसका खम्याजा आने वाले वक्त में आम जनता अवश्य ही देगी ।।