आंखिर को छू ऊ (राजेंद्र सिंह भंडारी द्वारा रचित कुमाऊनी कविता)
छु को जो पहाड़ा जंगलों में आग भड़कौण में लागि र
जानवर पक्षी और इंसानों कें इसिक सतौण में लागि र
को छू यस नासमझ जो समझन ना कर्मों सिद्धांत कें
भोव आपण बिनाश लिजी बद्दुआ कमोंण लागि र
पकड़ी जाओ और देई जाओ मृत्युदंड यास लोगों कें
खुलेआम जो पहाड़ में हाहाकार मचौण में लागि र
मत्ति भ्रष्ट छू या कमीं छू के पालन पोषण में उनरि
किलै ऊ आपण यस जानवरपना दिखौण में लागि र
बच्च ना क्वे जवान उमरदार छू शामिल य काम में
के ऊ आपण भै बेंणी नांतिनों कें सिखौण में लागि र
पछतावा हल भोव जब खुलाल आँख मिलल दंड
खुद आपुकें और आपण लोगों कें मरोंण में लागि र
परवार नांतिनों कें या खुद कें लागल जरुर पाप ठुल
आपण बाटों में खुद शूल अंगारे बिछौण में लागि र
देर सवेर बुझि जाल आग सँभलि जाल बीमार लै
आग लगौणी आपणों कें शमशान पूजौण में लागि र
जीवन मौत बिनाश इंसानों ना भगवानों हाथ में छू
ऊ बिचार आपण खानदान कें निपटोंण में लागि र
आपको बता दें कि राजेंद्र सिंह भण्डारी जी देश व दुनिया के सभी पहलुओं व घटनाओं पर बेहतरीन कविताएं लिखते हैं, इनके द्वारा लिखी गई कविताओं में एक कलग किस्म का जुड़ाव होता है जो उस कविता के पात्र के जीवन की बारीकियों को उजागर करती हैं। (कुमाऊनी कविता)
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