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सीता वन में अकेली कैसे रही ॥ कुमाऊँनी होली गीत

सीता वन में अकेली कैसे रही?

होली के दौरान मन को भाव बीमार करने वाला माहौल तब बन जाता है जब सीता जी के वन जाने की कहानी को होली के गीत के रूप में कुछ इस प्रकार से गया जाता है।

“सीता” वन में अकेली कैसे रही है, हां-हां जी “सीता” वन में अकेली कैसे रही है, कैसे रही दिन-रात।
“सीता” वन में अकेली कैसे रही है॥

“सीता” रंग-महल को छोड़ चली है, हां-हां जी “सीता” रंग-महल को छोड़ चली है, वन में कुटिया बनाए।
“सीता” वन में अकेली कैसे रही है॥

सीता” षठरस-भोजन छोड़ चली, हां-हां जी “सीता” षठरस-भोजन छोड़ चली, वन में कंद मूल फल खाए।
“सीता” वन में अकेली कैसे रही है॥

“सीता” सौंड-सफेदा छोड़ चली है, हां-हां जी “सीता” सौंड-सफेदा छोड़ चली है, वन में पतिया बिछाए।
“सीता” वन में अकेली कैसे रही है॥

“सीता” पान-सुपारी छोड़ चली है, हां-हां जी “सीता” पान-सुपारी छोड़ चली है, वन में वन-फल खाए।
“सीता” वन में अकेली कैसे रही है॥

“सीता” तेल-फुलेल को छोड़ चली, हां-हां जी “सीता” तेल-फुलेल को छोड़ चली, वन में धूल रमाए।
“सीता” वन में अकेली कैसे रही है ॥

“सीता” कंटकारो छोड़ चली है, हां-हां जी “सीता” कंटकारो छोड़ चली है , कंटक चरण लगाए।
“सीता” वन में अकेली कैसे रही है ॥

कैसे रही दिन रात, “सीता” वन में अकेली कैसे रही है॥

 

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नोट- होली का यह प्रसंग प्राचीन होली संग्रह की एक पुस्तक से लिया गया है॥

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