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प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की राह ताकता उत्तराखंड का ये गाँव

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की हकीकत

ग्रामीण क्षेत्रों को सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए साल 2000 में एक योजना बनाई गई जिसको नाम दिया गया प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, इस योजना के तहत कछुआ चाल से सड़कें बनाने का काम होता रहा, साल 2014 में मोदीजी के प्रधानमंत्री बनते ही इस योजना का बड़े जोर शोरों से प्रचार-प्रसार होने लगा, बाकी योजनाओं की तरह इस योजना के साथ भी प्रधानमंत्री मोदीजी का नाम जोड़ दिया गया। अगर आपको प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की हकीकत देखनी है तो आप कुछ दिन उत्तराखंड के गांवों का भ्रमण कर सकते हैं क्योंकि टेलीविजनों और अखबारों में छपे विज्ञापनों की मानेंगे तो ऐसा महसूस होगा कि गांव-गांव चप्पा-चप्पा में भाजपा और उसके के झंडे नहीं बल्कि ऑल वैदर सड़क पहुंच गई हो।

कुमाऊं के केंद्र में बसे सोमेश्वर और वहां की सड़कों को अगर आप देख लेंगे तो आपकी नजरों में लगे हजारों करोड़ों के विज्ञापनों के पर्दें खुल जाएंगे और विकास की परिभाषा भी समझ आ जाएगी।

उडेरी और कनगाड़ के लोगों का संघर्ष

सोमेश्वर बाजार से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव उडेरी और कनगाड़ के लोग पिछले कई सालों से सड़क के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इसी संघर्ष के दौरान कई बार सरकारैं बदल गए, नेता बदल गए, जो विधायक थे वो सांसद बन गए और जो सांसद थे वो राज्यसभा पहुच गए लेकिन गांव वालों को मिला तो सिर्फ आश्वासन वो भी कोरा आश्वासन।

सड़क नहीं होने से नहीं हो रही शादियाँ

इन गांवों में सड़क नहीं होने के कारण जो युवा नौकरी के लिए शहर जाते हैं वो वापस आने से कतराता है, विवाह योग्य हो चुके लड़कों को कोई लड़की देना नहीं चाहता या ये कहें कि कोई लड़कीयां इन गांवों में शादी करना नहीं चाहती और करती भी है तो उसकी पहली मांग होती है कि वो गाँव में नहीं रहेगी अपने पति के साथ शहर चले जाएगी, जिन बुजुर्गों ने खून-पसीने की कमाई और कड़े परिश्रम के बाद गांव में घर बनाया है वो उन घरों को बंजर होते कैसे देख सकते हैं।

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विधायक और संसद को लगा चुके हैं गुहार

गांव वासियों का कहना है कि उन्होंने इस संदर्भ में कई बार विधायक रेखा आर्य जी से भी बात की तो उन्हें आश्वासन के आलावा कुछ नहीं मिला, तथा सांसद अजय टम्टा जी से बात करने पर उन्होंने बताया कि सड़क का प्रस्ताव पास हो चुका था लेकिन जंगलात और गांव वालों की NOC नहीं मिलने के कारण काम आगे नहीं बढ़ पाया।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का सपना हमेशा ही रह जायेगा

वर्षों से सड़क बनने की उम्मीद लगाए बैठे ग्रामीणों को अब लगने लगा है कि सड़क बनने का सपना अब मात्र एक सपना ही बनकर रह जाएगा क्योंकि जिस तेजी से गांव के लोग पलायन कर रहे हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि जब गाँव में लोग ही नहीं रहेंगे तो सड़क किसके लिए आएगी? 

कल्पना कीजिये

कल्पना कीजिए अगर इन गांवों तक सड़क पहुच जाती तो वहां रोजगार के कितने विकल्प खुल जाते, सोमेश्वर की ऊंची चोटी पर बसे इस क्षेत्र में पर्यटकों का तांता लगा रहता और क्षेत्र के युवा खुद का रैस्टोरैंट, ढाबा इत्यादि खोलकर वहां अच्छा व्यवसाय कर सकते हैं और मोदीजी के आह्वान पर आत्मनिर्भर भारत का हिस्सा बन सकते हैं।

पर फिल्हाल तो ऐसा कुछ होने की संभावना नजर नहीं आ रही है क्योंकि कल्पनाओं और घोषणाओं से सड़क थोड़ी बन जाएगी।

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error: थोड़ी लिखने की मेहनत भी कर लो, खाली कापी पेस्ट के लेखक बन रहे हो!