कांग्रेस में ये चल क्या रहा है?
एक कुमाउनी कहावत है “बान-बानैं बल्द हराय” अर्थात खेत में हल जोतते-जोतते अचानक बैल का गायब हो जाना।
यह कहावत आजकल कांग्रेस पार्टी के साथ चरितार्थ हो रही है,
सोचिए कितना अजीब लगेगा जब बारात जाने का वक्त हो और यह तय नहीं हो कि दूल्हा कौन बनेगा, घोड़ी कौन चढ़ेगा?
कुछ ऐसी ही स्थिति आजकल चुनाव में कांग्रेस पार्टी के अंदर देखने को मिल रही है, जिसपर पार्टी उम्मीद लगाए बैठी है अचानक वह फेसबुक पर पोस्ट कर देता है कि ‘उसने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, वो भी बिना किसी निजी स्वार्थ के’ अब आप ही बताइए कि राजनीति में बिना निजी स्वार्थ के कोई झक मारने आएगा क्या? और अगर निस्वार्थ भाव से ही राजनीति में आए हो तो बार-बार दल बदल कर दलदल में क्यों फस रहे हो?
सिकुड़ती हुई कांग्रेस!
कांग्रेस हमारे देश की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण पार्टी रही है लेकिन आज के दौर में कांग्रेस से बुरी स्थिति में कोई नहीं है, धीरे-धीरे सिकुड़ती हुई कांग्रेस की स्तिथि को देखकर उस बुजुर्ग व्यक्ति की याद आती है जिसने जवानी में खूब संघर्ष भी किया और आनन्द भी उठाए लेकिन समय के साथ खुद को ढाल नहीं पाने के कारण नई पीढ़ी के लोगों से तालमेल बैठाने में असमर्थ हो गया।
लोकसभा चुनावों के इस दौर में जहां भाजपा अपने प्रत्याशियों के प्रचार में शामिल हो गई है, रैलियां निकली जा रही हैं तो वहीं कांग्रेस में अभी भी मंथन ही मंथन चल रहा है, कांग्रेस के मंथन में प्रत्याशी नही निकल पा रहे हैं जबकि इससे कम समय में देवताओं द्वारा किए गए समुद्र मंथन से अमृत निकल गया था।
कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी आंतरिक समस्याओं से नहीं उभर पा रही हैं, लगातार हार के बाद एक तरफ उसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है तो दूसरी तरफ बड़े-बड़े दिग्गज नेता रातों-रात पाला बदलकर दूसरी पार्टियों में चले जा रहे हैं।
कांग्रेस युक्त भाजपा
अपने एजेंडे में विपक्ष विहीन लोकतंत्र की राह को आसान बनाती भाजपा खुद कांग्रेस नेताओं से युक्त हो चुकी है और इनके नेता चुनावी भाषणों में कांग्रेस मुक्त भारत की बात कहकर गिने चुने कांग्रेसी नेताओं को भाजपा में शामिल होने का न्योता दे रहे हैं।
कांग्रेस नेताओं के भाजपा में जाने की घटनाएं इतनी बढ़ गई हैं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी बार-बार आवाज उठा रही है कि लोकतंत्र खतरे में है, लोकतांत्रिक ताकतों का दुरुपयोग किया जा रहा है, नेताओं को ईडी और सीबीआई का खौफ दिखाकर दल बदलने या फिर जेल जाने के विकल्प दिए जा रहे हैं।
विपक्ष विहीन राजनीति लोकतंत्र को राजतंत्र में परिवर्तित कर राजा को तानाशाही बना देती है, शब्दों को थोड़ा आसान करें तो इसका एक उदाहरण इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमर्जेंसी को ही मान लेते हैं, क्योंकि जीएसटी, नोटबंदी, तालाबंदी, डुल्जैडोजर आदि चीजों को तानाशाही की श्रेणी में रखकर हमें उड़ता हुआ तीर थोड़ी लेना है।
चिंता की कोई बात नहीं है
वैसे चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि देश की जनता को इस बात से क्या ही फर्क पड़ जाएगा, सदियों तक गुलामी झेल चुके इस देश की जनता में बहुत ज्यादा सहनशक्ति है उसका गुस्सा बहुत क्षणिक होता है, कुछ ही समय में लोग सबकुछ भूलकर अपनी किस्मत को कोसने लग जाते हैं, पर आजाद देश के गुलाम नागरिकों के लिए तानाशाही भी वरदान के समान होती है।
देश की राजनीति में इतना कुछ चल रहा है, अब आप ही बताइए क्या कांग्रेस खतरे में है या फिर लोकतंत्र?
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